Friday, January 18, 2013

अमृतांश आपके दर्शनार्थ -






दिवोदास के जनहित काजा। पराक्रमी पुरवंशी राजा।।
वृहदश्व सत्यव्रती ताता .भक्ति भावमयी द्रष्टि दाता .
मुनि विश्वामित्र ने राम को बताया कि एक राजा दिवोदास थे। वे सदा जनहित के कार्य करते थे। वे पराक्रमी राजा थे और उनका पुरवंश था। उनके पिता राजा वृहदश्व थे जो सत्यव्रत का पालन करते थे और वे भक्ति भाव वाले थे।
करुणा सहिष्णुता तन भारी। दिवोदास की सुता दुलारी।।
रूपवती सुवर्णा कुमारी। अहल्या नाम भूप उचारी।।
राजा दिवोदास की दुलारी सुता अहल्या थी। अहल्या के तन में करुणा और सहिष्णुता भरी थी। वह बड़ी रूपवती और सुवर्णा थी
गौतम को ब्याही सौभाग्या। पति ऋषि व्रत तप तनया लाग्या।।
दम्पति जीवन चहुँ खुशहाला। गौतम महर्षि श्रेष्ठ मराला।।
वह सौभाग्यवती कन्या गौतम ऋषि को ब्याही थी। पति-पत्नी दोनों व्रत और तप किया करते थे। उनका दांपत्य जीवन बड़ा खुशहाल और आनंदमय था। गौतम ऋषि का हृदय पवित्र और श्रेष्ठ था।
पूजा गयी नारि एक बारा। शचीपति ने उसको निहारा।।
मोहित हुआ कामुक सुरेशा। अन्तः ठानी कामांध एषा। .
एक बार अहल्या नारि पूजा करने के लिए मंदिर गयी थी। इंद्र ने उसको निहार लिया और वह कामुक इंद्र उस पर मोहित हो गया। उस कामांध ने अपने अन्तः में मिलने की इच्छा ठान ली।