Friday, May 10, 2013

 
बृहद भरत महाकाव्य से कुछ अम्रतांश आपके आनंद हेतु-
 
भरत  विनय करे बार बारा। नैनन से बहे अश्रु धारा।
राजा राम सदैव उचारा। भ्रातहिं भारत नेक संसारा।
 
मंगल समागम म्रत्युलोका। भ्रात भरत सम नहिं इहिलोका।
भ्रात स्नेह अन्तः सरसाया। हंस सु मधुरं वचन सुनाया।
 
तबहिं  भरत सहज मुस्कराएं। प्रभु!ये सुवर्णहिं पादुकाएं।
इन पर चरण रखो हे नाथा। छूकर इनको करो सनाथा।
 
राम ने फिर भरत को दीनी। सर्व कार्य विरद समीचीनी।
 
 
प्रस्तुति -
 
योगेश 


Friday, January 18, 2013

अमृतांश आपके दर्शनार्थ -






दिवोदास के जनहित काजा। पराक्रमी पुरवंशी राजा।।
वृहदश्व सत्यव्रती ताता .भक्ति भावमयी द्रष्टि दाता .
मुनि विश्वामित्र ने राम को बताया कि एक राजा दिवोदास थे। वे सदा जनहित के कार्य करते थे। वे पराक्रमी राजा थे और उनका पुरवंश था। उनके पिता राजा वृहदश्व थे जो सत्यव्रत का पालन करते थे और वे भक्ति भाव वाले थे।
करुणा सहिष्णुता तन भारी। दिवोदास की सुता दुलारी।।
रूपवती सुवर्णा कुमारी। अहल्या नाम भूप उचारी।।
राजा दिवोदास की दुलारी सुता अहल्या थी। अहल्या के तन में करुणा और सहिष्णुता भरी थी। वह बड़ी रूपवती और सुवर्णा थी
गौतम को ब्याही सौभाग्या। पति ऋषि व्रत तप तनया लाग्या।।
दम्पति जीवन चहुँ खुशहाला। गौतम महर्षि श्रेष्ठ मराला।।
वह सौभाग्यवती कन्या गौतम ऋषि को ब्याही थी। पति-पत्नी दोनों व्रत और तप किया करते थे। उनका दांपत्य जीवन बड़ा खुशहाल और आनंदमय था। गौतम ऋषि का हृदय पवित्र और श्रेष्ठ था।
पूजा गयी नारि एक बारा। शचीपति ने उसको निहारा।।
मोहित हुआ कामुक सुरेशा। अन्तः ठानी कामांध एषा। .
एक बार अहल्या नारि पूजा करने के लिए मंदिर गयी थी। इंद्र ने उसको निहार लिया और वह कामुक इंद्र उस पर मोहित हो गया। उस कामांध ने अपने अन्तः में मिलने की इच्छा ठान ली।

Thursday, May 10, 2012

जय श्री कृष्ण

हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे . . 
हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे . .

Sunday, March 4, 2012

YOGESH VIKAS



RADHA KI होली


 "Radha Ji BoLiKrishna ji Se,Is Shart Pe Khelungi Pyar Ki HOLI,JeetuTo TuZe Paau,Aur,Haaru To Teri Ho Jau."

Tuesday, February 28, 2012

धन्यवाद

धन्यवाद युगहंस परिवार को हार्दिक बधाइयां