Friday, May 10, 2013

 
बृहद भरत महाकाव्य से कुछ अम्रतांश आपके आनंद हेतु-
 
भरत  विनय करे बार बारा। नैनन से बहे अश्रु धारा।
राजा राम सदैव उचारा। भ्रातहिं भारत नेक संसारा।
 
मंगल समागम म्रत्युलोका। भ्रात भरत सम नहिं इहिलोका।
भ्रात स्नेह अन्तः सरसाया। हंस सु मधुरं वचन सुनाया।
 
तबहिं  भरत सहज मुस्कराएं। प्रभु!ये सुवर्णहिं पादुकाएं।
इन पर चरण रखो हे नाथा। छूकर इनको करो सनाथा।
 
राम ने फिर भरत को दीनी। सर्व कार्य विरद समीचीनी।
 
 
प्रस्तुति -
 
योगेश